Monday 12 August 2013

करगा

करगा - [लघु-कथा संग्रह ] कथा-कार - श्री मती शकुन्तला शर्मा

समीक्षक - श्री रामनाथ साहू

छत्तीसगढी - महतारी ला धनी - मानी बनाए के उजोग मा कतेक न कतेक वोकर सेवक मन लगे हावैं । वोमन साहित्य के जम्मो विधा म अपन लेखनी ला चलावत हावैं । एकरे गुरतुर फल देखे बर मिलत हे कि आज छत्तीसगढी - भाखा म साहित्य - लेखन के जम्मो विधा म , एक ले आगर एक कृति - मन छपत जात हावैं , फेर आज के जुग हर " स्मार्ट - जुग " ए , जतका छोटे मा परफॉरमेंस मिल जावय , वोतके बढिया लागथे । जादा पढे बर नई परय फेर मजा ओतके आ जाथे । एकरे सेती आज, साहित्य मा 'हाइकू' - 'लघु- कथा' के चलन हर बढत जात हावय ।

वरिष्ठ साहित्यकार , शिक्षा-विद  अऊ समीक्षक डा. सत्यभामा ऑडिल हर "करगा " के आमुख म कहे हावय -  "शकुन्तला शर्मा के नाव हर सरलग लिखइया मन के पंक्ति म , सम्मान के साथ रखे जाथे । शकुन्तला पहिली कविता के क्षेत्र म नाव जगाइस , पीछू संस्कृत कविता के अनुवाद के रूप म नाव कमाइस , फेर किस्सा - कहिनी के क्षेत्र म घलो आगे बढ गे । ऊँकर लेखन हर पोठ होवत जात हे अऊ बिसय के घलो विस्तार होवत जात हे । "छत्तीसगढ के कोठी ल भरत हे शकुन हर ।"   

करगा के भूमिका ल डा. विनय कुमार पाठक हर लिखे हावैं । सोलह पेज के भूमिका मा हर कहानी के  ऊपर चर्चा होय हावय । पाठक जी मन अपन भूमिका मा कहत हें कि - " करगा - लघु - कथा हर विकलॉग - विमर्श के ओलवार  धरे पहिली कथा- संग्रह ए । " घी गँवॉगे पिसान म " शीर्षक कहानी हर , विकलॉग - विमर्श के आदर्श कहानी ए - जेमा एक झन इंजीनियर हर अ‍ॅधरी कइना संग , बिहाव करके बहुत खुश हावै , काबर कि वोकर घरवाली हर बहुत बडे गायिका ए , जेला सरी दुनियॉ जानथे । " बिछल परे तव हर गंगा " - कहानी म एक झन खोरी इंजीनियर नोनी हर , अपन सँगवारी संग बिहाव करके , खुशी - खुशी जियत हे । " खोरवा " कहानी मा , एक झन खोरवा के समर्पित साधना के वर्णन हावै । वोहर खोरवा हो के घलाव , केदारनाथ - धाम तक पहुँच गे , अतके नहीं वोहर , लेखिका ल किस्सा - कहानी सुनावत - सुनावत केदारनाथ - मन्दिर मेर कब अमरा दिस तेकर पता नइ चलिस । लेखिका ल अइसे लागे लागिस , के एही हर बबा - केदारनाथ तो नोहय ?"   

"करगा "  हर छत्तीसगढ के समर्थ लेखिका शकुन्तला शर्मा के जीवन के हर रंग मा रंगे एक सौ एक लघु - कथा के संग्रह ए । जइसन कि शीर्षक हर बतावत हे , ए संग्रह के बहुत अकन कहानी मन , हमर समाज के भ्रष्टाचरण , कायरता के जबर्दस्त - पोठ-लगहा पडताल करत हावैं । कथा- कार हर ये सबो अवॉछनीय करगा - मन ला ललकारत हावै, लाठी धर - के ऊँकर पीछू - पीछू भागत हावै , तेहर बड - सुघ्घर लागथे । पाठक के घलाव , मुठा बँधा जाथे अऊ वोहू हर , लाठी धर के , दॉत - पीसत- पीसत , लेखिका के संगे - संग , दौंडे लागथे । रस -विभोर हो जाथे ।

" गोल्लर " कहानी म गोल्लर मा लगाम लगाए के हिम्मत कहूँ म नइये । आज अइसने " गोल्लर " मन तसमई खावत हावैं आऊ सिधवा मनखे हर मही बर तरसत हावै । ए संग्रह मा , देश के समाज के , जौन भी विद्रूपता हावय , तौन मन अपन , समाधान के अगोरा म , पाठक के आघू म आ के ठाढ हो जाथे आऊ पाठक हर , यथार्थ के धरातल म ओकर समाधान पाए बर अकुला जाथे । " जागे बर लागही " , " जयचन्द ", " करिया - पोत " कहानी मन के तेवर अइसने हे । सुख - लगहा बात ए हे के , छत्तीसगढी लोकोक्ति आऊ हाना मन ला , शीर्षक बना के लिखे कहानी मन मा , पूरा के पूरा छत्तीसगढी संस्कृति आऊ जीवन - दर्शन हर " ननद - भौजाई" कस जुगल-बन्दी करत दिखथे । " घी गँवॉगे पिसान म " के तरज म ये पूरा किताब ल , पढे के आऊ गुने के जरूरत आज  सबो झन ला हावय ।

" करगा" हर  वैभव - प्रकाशन , रायपुर [ छत्तीसगढ ] म छपे हावय । दू सौ तीन पेज के किताब ए अऊ एकर मूल्य हे - 150 .00 रुपिया ।           

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